सोमवार, 24 नवंबर 2008

तू ..................


अमावस में भी पूनम का रात लगे है तू

रात तो रात दिन को भी चाँद लगे है तू

अपनी जलन में जल जल कर देखा जो तुझे मै

जिन्दगी के अंधेरे में जुगनू लगे है तू


तपती मरुभूमि में चंचल नदी लगे है तू

पतझर के मौसम में घना पेड़ लगे है तू

हजारों के बीच में जो तुझे छूप के देखा मै

उस भीड़ में भी सबसे जुदा लगे है तू


अंतहीन सफर का एक लक्ष लगे है तू

भटकने के क्षन में नई दिशा लगे है तू

पता लेकर अपनों को धुंडने जो निकला मै

मेरे अपनों के इस शहर में बस अपना लगे है तू
कैसे बताऊँ लोगो को की क्या क्या लगे है तू
जीबन के बंद कमरे का दस्तक लगे है तू
जब अपने सिरहाने पे मौत को देखा मै
सच कहू तो सच में अपनी जान लगे है तू


सैकत






1 टिप्पणी:

Piyush ने कहा…

kya baat hai da, good poem