शनिवार, 29 नवंबर 2008

कफ़न .........

ये जाने जा तू चली दूर एक सुराब की तरह
मै महकता रहा तेरे दिल में एक हेना की तरह
मेरी चाहत ने रंग लाई या ना लाई तू समझ
मैंने तो प्यार किया है तुझसे एक फ़लसफा की तरह

कोई गाया तुझे ग़ज़ल तो कोई गीत की तरह
मैंने तो पड़ा है तुझे एक आयात की तरह
युही प् लेना तुझे कोई मुश्किल तो ना था
मैंने चाहा है तुझे ज़िन्दगी में एक धड़कन की तरह

हर कोई मिलता रहा तुझसे हमसफ़र की तरह
मै जब भी मिला तुझसे मिला अजनबी की तरह
दिन तो दिन जब रात को भी नीद हुई गूम
मैंने ओड़ लिया अपने ख्वाबों को एक कफ़न की तरह

सैकत


सोमवार, 24 नवंबर 2008

तू ..................


अमावस में भी पूनम का रात लगे है तू

रात तो रात दिन को भी चाँद लगे है तू

अपनी जलन में जल जल कर देखा जो तुझे मै

जिन्दगी के अंधेरे में जुगनू लगे है तू


तपती मरुभूमि में चंचल नदी लगे है तू

पतझर के मौसम में घना पेड़ लगे है तू

हजारों के बीच में जो तुझे छूप के देखा मै

उस भीड़ में भी सबसे जुदा लगे है तू


अंतहीन सफर का एक लक्ष लगे है तू

भटकने के क्षन में नई दिशा लगे है तू

पता लेकर अपनों को धुंडने जो निकला मै

मेरे अपनों के इस शहर में बस अपना लगे है तू
कैसे बताऊँ लोगो को की क्या क्या लगे है तू
जीबन के बंद कमरे का दस्तक लगे है तू
जब अपने सिरहाने पे मौत को देखा मै
सच कहू तो सच में अपनी जान लगे है तू


सैकत






रविवार, 23 नवंबर 2008

भीड़


भीड़ में अक्सर याद आते है वो
जिन्दगी में तन्हा रह जाते है वो
भीड़ में अक्सर याद आते है वो

छोटी सी इस जिन्दगी में
पल - पल सवार देते है जो
भीड़ में अक्सर याद आते है वो

नाज़ुक बोहत है रिश्ते यहाँ पर
फिर भी उसको निभाते है जो
भीड़ में अक्सर याद आते है वो

हमसे खपा या हम है खपा
समझने न देते है जो
भीड़ में अक्सर याद आते है वो

जिन्दगी के हर सफर में
काटें ही चुनते है जो
भीड़ में अक्सर याद आते है वो

जब भी अँधेरा होता जीबन में
लौ बनकर जलते रहते है जो
भीड़ में अक्सर याद आते है वो

जीबन में हो खुशियाँ ही खुशियाँ
खामोशी से खामोश होते है जो
भीड़ में अक्सर याद आते है वो

सैकत




शनिवार, 22 नवंबर 2008

कैसे कहू


बहुत ढूंडा कुछ शब्दों को
कुछ कहना था मुझे उनसे
वो आती थी तो हरपल
कुछ कह जाती थी मुझसे ।

मै चाह कर भी कभी
कुछ कह न सका उनसे
जब जब आई वो
नज़रे मिला न सका उनसे ।

कभी ये सुबह कभी ये रात
हर लम्हा जुडा है उनसे
ये वक्त का आना जाना
हर एक चाहत है उनसे ।

आज जीबन के शेष प्रहर में
जब मिल रहा हू उनसे
कैसे कहूँ की हाँ
मैंने प्यार किया है उनसे .......

सैकत
२२.११.२००८