रविवार, 19 अप्रैल 2009

पहचान

पेशानी के बल छुपाता हूँ तो हाथों के नस दीखते है
ये उम्र नही दर्द का तकाजा है यारो
जिसे मिटाने चला था अपनी जिन्दगी से
आज वो ही मेरा पहचान है यारो ।

तुम मेरे साथ रहो तो सम्वल कर रहना
ये रोग कुछ अलग सा है यारो
कल चला था तो एक कारवा था पीछे
आज बस साया साथ देता है यारो

यारो का यार बनकर भी देखा था कभी
नसीब में दुश्मनी ही मिला यारो
आज भी थाम लूँगा ढहते रिश्तो को
कभी मेरा हाथ तो थामकर देखो यारो

सैकत