शनिवार, 29 नवंबर 2008

कफ़न .........

ये जाने जा तू चली दूर एक सुराब की तरह
मै महकता रहा तेरे दिल में एक हेना की तरह
मेरी चाहत ने रंग लाई या ना लाई तू समझ
मैंने तो प्यार किया है तुझसे एक फ़लसफा की तरह

कोई गाया तुझे ग़ज़ल तो कोई गीत की तरह
मैंने तो पड़ा है तुझे एक आयात की तरह
युही प् लेना तुझे कोई मुश्किल तो ना था
मैंने चाहा है तुझे ज़िन्दगी में एक धड़कन की तरह

हर कोई मिलता रहा तुझसे हमसफ़र की तरह
मै जब भी मिला तुझसे मिला अजनबी की तरह
दिन तो दिन जब रात को भी नीद हुई गूम
मैंने ओड़ लिया अपने ख्वाबों को एक कफ़न की तरह

सैकत


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