शनिवार, 22 नवंबर 2008

कैसे कहू


बहुत ढूंडा कुछ शब्दों को
कुछ कहना था मुझे उनसे
वो आती थी तो हरपल
कुछ कह जाती थी मुझसे ।

मै चाह कर भी कभी
कुछ कह न सका उनसे
जब जब आई वो
नज़रे मिला न सका उनसे ।

कभी ये सुबह कभी ये रात
हर लम्हा जुडा है उनसे
ये वक्त का आना जाना
हर एक चाहत है उनसे ।

आज जीबन के शेष प्रहर में
जब मिल रहा हू उनसे
कैसे कहूँ की हाँ
मैंने प्यार किया है उनसे .......

सैकत
२२.११.२००८

1 टिप्पणी:

aparnaa shrivastava ने कहा…

bahut achhi lagi kavita.
i like it..