रविवार, 26 अक्तूबर 2008

काश .....


काश की कभी युही मिल जाती तुम चलते चलते

ये दिन भी युही रात हो जाता कभी चलते चलते


ये दुआ है की तुम मिलो ना मिलो मुझे कभी

तुम्हे हर खुशी मिले बस युही चलते चलते


हर वो तन्हाई जो मैंने जिया है तुम्हारे बगैर

तुम्हे महफ़िल सजा दे बस युही चलते चलते


जब निकल के जाऊ मै तेरे दर से कही दुर

तू बस देख लेना एक नज़र बस युही चलते चलते


यकीन कर मै ना आऊंगा लौट के कभी'

यु ही खत्म होगी सफर तेरे बिन चलते चलते



सैकत

1 टिप्पणी:

Shivangi Shaily ने कहा…

just splendid!
you compose very well!