रविवार, 10 मई 2009

चाहत

ये बादल ज़रा धीरे से सरकना अभी
मेरा चाँद सोया है अभी - अभी
ये नजदीकिया टूट जायेगी
गर वो जाग जायेगी अभी

नीद से सिमटी है वो मेरे सिने से
गेसूं लिपटे है उसके गालो से
अधरों से अधरों की दुरी बस कुछ ही दूर
ऐसे में उसे जगाना न अभी

गर नीद मुझे भी आ जाती
ये नजदीकिया और बढ जाती
सांसे टकरातीं सांसो से तो बस
सारी दुरिया मिट जाती अभी

सारी रात गुजर जाने दो यु ही
वक्त को ठहर जाने दो कही '
इस रात का कभी सुबह न हो
बस यही एक चाहत है अभी

सैकत

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